समय का चक्र

समय का चक्र

सनातन  धर्म की सभ्यता में समय को चक्र कहा गया है। मूलतः समय को 4  युगो में  में बांटा गया है , सतयुग , त्रेता ,द्वापर ,और कलयुग जो अभी चल रहा है। इस प्रकार का वर्गीकरण किस आधार पर किया गया है ये तो शास्त्रों के गहन अध्ययन से पता चलेगा पर मेरी समझ से  इस ब्रह्माण्ड में होने वाली सभी सूक्ष्म या विराट घटनाये चक्र में चलती है।  हर तरह की घटना छोटे या बड़े समयांतराल के बाद खुद को दोहराती है।  और हम ये समझ बैठते है कि ये परिस्थितिया अब चिरकालिक है ये कभी बदलेगी नहीं।  ऐसी ही सोच एक समय मुगलो कि फिर उसके बाद अंग्रेजो कि उसके बाद कांग्रेस कि रही होगी। इसी के विपरीत उस काल में मुगलो के समय के भारतीय लोग , फिर अंग्रेजो के समय के भारतीय लोग , फिर कांग्रेस के समय  कांग्रेस विरोधी लोग भारतीय लोग भी  संशय में रहते होंगे कि क्या ये बदलेगा ? पर भूतकाल  गवाह है कि कुछ भी स्थिर नहीं रहा। ये ही सिद्ध करता हि  कि चाहे कितनी भी जी तोड़ मेहनत कर ली जाये समय के प्रवाह को रोकने ,कि परिस्थितियों को बदलने कि, चाहे विपरीत हो या अनुकूल ,ये बदल के रहती है।  हमारे प्रयास हमारे कर्म है जो हमें करना ही चाहिए।  पर ये सोच कर अहंकार करना, कि हमने प्रयास किये है अब तो सब कुछ हमारे अनुकूल ही होगा, समय के चक्र को ललकारने जैसे है।  

कहा भी है “होहिये वो ही जो राम रची रखा  ” , सनातन के ऋषि मुनियो ने ाहजारो वर्षो के गहन अध्ययन और परीक्षणों के बाद ही इस प्रकार के तथ्यों को रख।  

परिस्थितिया पहले भी बदली और अब भी बदलेंगी जब इनका समय पूरा हो जायेगा और समय पूरा होते होते दिन रत में बदल चूका होगा व् रात दिन में बदल चुकी होगी कहने का मतलब है कि BJP कांग्रेस  के सामान बन चुकी होगी व् कांग्रेस बीजेपी के आरम्भिक समय के लोगो जैसे लोगो कि पार्टी बन चुकी होगी ।  सो  ये समय का चक्र कहता है कि न तो  BJP को बहुत खुश या अतिआत्मविश्वास में रहना चाहिए और न ही विरोधी पार्टियों को निराश होना चाहिए। क्योंकि  सीढिया चढ़ने के बाद, आखिरी सीढ़ी के बाद सिर्फ निचे उतरने कि सीढ़ी ही मिलती।  सतयुग -त्रेता -द्वापर -कलयुग ,हर बार सतयुग आता है फिर कलयुग आता है फिर सतयुग इस प्रकार चक्र चलता रहेगा , इस चक्र में हमारे द्वारा किये गए कर्म निर्धारित करेंगे कि हमारे अनुकूल समय कितने वक्त में आएगा।  समय तो जरूर बदलेगा 100 % बदलेगा लेकिन हमारे कर्म अगर अच्छे है तो अच्छा वक्त जल्दी आएगा और बुरा वक्त जल्दी निकल जायेगा। लेकिन ये  सोचना कि हमारे लिए वर्तमान कि अनुकूल परिस्थितिया कभी नहीं बदलेगी हम इसको बांध कर रख लेंगे ये भ्रम है। ऐसी स्थिति में जब हम हमारे शास्त्रों में देखते है , जहा लिखा है कि हर व्यक्ति अपना एक role play करने के लिए इस संसार में आया है तो बिलकुल सही लगता है।  

जब हमारे हाथ  में समय या परिस्थिति को रोकना नहीं है न ही हमारे हाथ में  इसे बदलना है तब तो हम सिर्फ अपना role ही अदा कर रहे है।  अगर अच्छे से करेंगे तो अगले जनम शायद फिर से role मिले , बहुत अच्छा करेंगे तो ज्यादा बड़ा role मिले और बुरा करंगे तो अगले जनम में बहुत बुरा role मिले जहा हमें अच्छे काम करने का वातावरण भी न मिले।  बहुत ही गूढ़ अर्थ छिपा है , हम अगले पिछले जनम कि बात न माने तो भी इस जनम में तो अनुकूल परिस्थितिया जल्दी बनेगी ये तो सच है ही।