सिक्के के अनेक पहलू

सिक्के के अनेक पहलू

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अमेठी से राहुल गाँधी का चुनाव न लड़ना या रायबरेली से चुनाव लड़ना , ये शतरंज कि कोई चाल है ,ऐसा लगता तो नहीं है , , मोटा-मोटी तोर पर तो देखने से तो लगता है कि ये मजबूरी में लिया गया अंतिम क्षण का निर्णय है ।
राहुल गाँधी कि पूरी पर्सनालिटी को देखने से लगता है कि रायबरेली से चुनाव् लड़ना एक बालहठ का नतीजा

 दिखाई पड़ता है। ऐसा लगता है कि अमेठी से एक बार चुनाव हार जाने के उपहास कि वजह से निराश राहुल गाँधी अपनी माँ से हठ करके रायबरेली से चुनाव लड़ने को मना लिया। ऐसा भी लगता है कि आज से कुछ महीने पहले सोनिया गाँधी ने राजसभा में जा कर ये सीट बेटी के लिए खाली कि होगी पर बाद में भाई बहन के कम्पटीशन में बेटे ने जिद करके ये सीट हथिया ली। आम तोर पर भारतीय परिवारों में ऐसा होता रहा है। इतना देर लगाने कि वजह ही जिद रही होगी। थोड़ा हास्यास्पद लगता है पर ऐसा ही प्रतीत होता है। इस तरीके से राहुल गाँधी द्वारा अमेठी में नहीं जिताने वाले कार्यकर्ताओ को सबक सीखना भी मकसद हो सकता है ,जिस तरह का व्यवहार राहुल गाँधी पार्टी के लोगो के साथ करते है उससे ऐसा लगता है।
जहा तक स्मृति ईरानी कि पॉपुलैरिटी को राहुल गाँधी के खिलाफ लड़ने से जोड़ना पहले चुनाव में तो सही था पक्योंकि प्रथम पारी में तो बहुत मेहनत लगी होगी स्मृति ईरानी को , और मेहनत जहा होती है वह तो फल मिलता ही है , लेकिन दूसरी बार इलेक्शन इसलिए नहीं लड़ना ताकि स्मृति ईरानी कि पॉपुलैरिटी या इम्पोर्टेंस कम हो जाये हास्यास्पद लगता है। क्योंकि स्मिरित ईरानी को राहुल गाँधी को हराकर जो फायदा मिलना था वो तो मिल चुका है फ्रूट तो वो खा चुकी अब तो छिलका बचा है उसे बचाने के लिए अमेठी से रायबरेली जाना relevant नहीं लगता है। अब अगर रायबरेली में भी हार होती है फिर से बीजेपी का उम्मीदवार पॉपुलैरिटी पा जायेगा फिर क्या करेंगे। और रायबरेली से चुनाव लड़ने वाला BJP का उम्मीदवार जरूर चाहेगा कि उसकी जीत हो ताकि उसका भी स्मिरीति ईरानी कि तरह कद बड़ा हो जाये , और ऐसा कौन नहीं चाहेगा , तो इस तरह
का तर्क सही नहीं लगता है। इस तरह से रायबरेली चुनाव् लड़ना ये भी प्रदर्शित कि वायनाड से जीतना शायद मुश्किल है कांग्रेस के लिए। तो समस्या का समाधान करने के लिए रायबरेली से चुनाव लड़ना उपाय है। इसका एक पहलू और है इसका, कि काम से काम एक सीट तो राहुल गाँधी जीत जाये ,इज्जत रखने के लिए। और अगर दोनों जीत ली तो BJP को कांग्रेस कि काबिलियत दिखाने के लिए। एक और पहलू ये भी है कि सोनिया गाँधी इस बार अगर रायबरेली से जीत नहीं पाती तो बहुत ख़राब इम्प्रैशन बनता , ऐसा रायबरेली का घटता वोटिंग pattern देख कर लगता भी है।